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श्याम नारायण पाण्डेय जी का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय तथा रचनाएं/shyam narayan Pandey ji ka jivan Parichay avm rachnaye
श्याम नारायण पाण्डेय जी का जीवन परिचय एवं रचनाएं
shyam narayan Pandey ji ka jivan Parichay avm rachnaye
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संक्षिप्त परिचय
नाम | श्याम नारायण पाण्डेय |
जन्म | 1907 ई. |
जन्म स्थान | डुमराँव गाँव, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 1991 ई. डुमराँव |
मृत्यु स्थान | डुमराँव |
काव्य कृतियाँ | 'हल्दीघाटी', 'जौहर','तुमुल', 'रूपान्तर','आरती', तथा 'जय हनुमान' आदि। |
साहित्य में योगदान | वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि। |
जीवन-परिचय
साहित्यिक परिचय
श्याम नारायण पाण्डेय आधुनिक काव्य धारा के प्रमुख वीर कवियों में से एक थे। वीर काव्य को इन्होंने अपनी कविताओं का मुख्य विषय बनाया। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को अपने काव्य का आधार बनाकर इन्होंने पाठकों पर गहरी छाप छोड़ी है।
कृतियाँ (रचनाएँ)
श्याम नारायण पाण्डेय ने चार उत्कृष्ट महाकाव्यों की रचना की थी, जिनमें से 'हल्दीघाटी (1937-39 ई.)' और 'जौहर (1939-44 ई.)' को अत्यधिक प्रसिद्धि मिली। 'हल्दीघाटी' में वीर राणा प्रताप के जीवन और 'जौहर' में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी के आख्यान हैं। इनके अतिरिक्त पाण्डेय जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं। तुमुल (1948 ई.), रूपान्तर (1948), आरती (1945-46 ई.), 'जय हनुमान' (1956 ई.) ।
तुमुल 'त्रेता के दो वीर' नामक खण्ड काव्य का परिवर्धित संस्करण है, जबकि 'माधव', 'रिमझिम',' आँसू के कण' और 'गोरा वध' उनकी प्रारम्भिक लघु कृतियाँ हैं।
भाषा-शैली
हिन्दी साहित्य में स्थान
श्याम नारायण पाण्डेय जी हिन्दी साहित्य के महान् कवियों में से एक के हैं। इन्होंने इतिहास को आधार बनाकर महाकाव्यों की रचना की, जोकि हिन्दी साहित्य में सराहनीय प्रयास रहा। द्विवेदी युग के इस रचनाकार को वीरग्रन्थात्मक काव्य सृजन के लिए हिन्दी साहित्य में अद्वितीय स्थान दिया जाता है।
श्याम नारायण पाण्डेय जी की काव्य खण्ड ‘पद’ के सभी पद्यांश की संदर्भ,प्रसंग,व्याख्या, काव्य सौंदर्भ
मेवाड़-केसरी देख रहा,केवल रण का न तमाशा था। वह दौड़-दौड़ करता था रण, वह मान रक्त का प्यासा था चढ़कर चेतक पर घूम-घूम करता सेना रखवाली था। ले महामृत्यु को साथ-साथ मानों प्रत्यक्ष कपाली था।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड के 'पद' शीर्षक से उद्धृत है। यह श्री श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित काव्य 'हल्दीघाटी' से लिया गया है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने महाराणा प्रताप की वीरता का वर्णन करते हुए, हल्दीघाटी के युद्ध का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या –
काव्य सौन्दर्य
भाषा खड़ी बोली
रस वीर
शैली प्रबन्ध
गुण ओज
शब्द –शक्ति अभिधा
छन्द मुक्त
अलंकार
'दौड़-दौड़', घूम-घूम तथा 'साथ-साथ' में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। 'मानो प्रत्यक्ष कपाली था' में 'मानो' बोधक शब्द है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
चढ़ चेतक पर तलवार उठा,रखता था भूतल पानी को । राणा प्रताप सिर काट-काट,करता था सफल जवानी को ।। सेना नायक राणा के भी -रण देख-देखकर चाह भरे।मेवाड़ सिपाही लड़ते थे दूने-तिगुने उत्साह भरे।।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड के 'पद' शीर्षक से उद्धृत है। यह श्री श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित काव्य 'हल्दीघाटी' से लिया गया है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने महाराणा प्रताप और उनके सेना नायक के वीरत्व का वर्णन किया है।
व्याख्या महाराणा प्रताप की सेना और मुगलों की सेना के मध्य भयानक युद्ध चल रहा था। जिस प्रकार भूमि के नीचे पानी में हलचल होने पर उफान उठता है और उस उफान में बहुत कुछ तहस-नहस हो जाता है। उसी प्रकार अपने मान-सम्मान की रक्षा हेतु महाराणा प्रताप के हृदय में उफान उठ गया था। उन्होंने अपने घोड़े पर बैठकर तलवार उठा ली और अपने विरोधियों का संहार करना आरम्भ कर दिया।
मेवाड़ के राजकुमार ने मुगलों की सेनाओं के सर धड़ से अलग करके अपनी जवानी की सार्थकता को सिद्ध किया था। महाराणा प्रताप के इस रौद्र रूप को देखकर मेवाड़ सेनानायक और सिपाहियों में उत्साह का संचार होने लगा था। पहले की अपेक्षा अब मेवाड़ की सेना ने भी युद्ध में अपना प्रयास बढ़ा दिया और विपक्षियों को ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
काव्य सौन्दर्य
भाषा खड़ी बोली
रस वीर
शैली प्रबन्ध
छन्द मुक्त
गुण ओज
शब्द-शक्ति अभिधा
अलंकार
'चढ़ चेतक' में 'च' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है। काट-काट में काट वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है
क्षण मार दिया कर कोड़े से.
Aram rappaport biography of williamरण किया उतर कर घोड़े से। राणा रण कौशल दिखा दिखा, चढ़ गया उतर कर घोड़े से क्षण भीषण हलचल मचा-मचा, राणा-कर की तलवार बढ़ी। था शोर रक्त पीने का यह रण चण्डी जीभ पसार बढ़ी।।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड के 'पद' शीर्षक से उद्धृत है। यह श्री श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित काव्य 'हल्दीघाटी' से लिया गया है।
प्रसंग कवि ने हल्दीघाटी के युद्ध का भीषण चित्रण करते हुए राणा प्रताप के रौद्र रूप का वर्णन किया है।
व्याख्या
काव्य सौन्दर्य
भाषा खड़ी बोली
रस वीर और बीभत्स
छन्द मुक्त
शैली प्रबन्ध
गुण ओज
शब्द शक्ति अभिधा
अलंकार
'राणा रण', में 'र' वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है। 'दिखा दिखा' और 'मचा-मचा' में एक शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
वह हाथी दल पर टूट पड़ा, मानो उस पर पवि छूट पड़ा। कट गई वेग से भू, ऐसा शोणित का नाला फूट पड़ा। जो साहस कर बढ़ता उसको, केवल कटाक्ष से टोक दिया। जो वीर बना नभ-बीच फेंक, बरछे पर उसको रोक दिया।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड के 'पद' शीर्षक से उद्धृत है। यह श्री श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित काव्य 'हल्दीघाटी' से लिया गया है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने महाराणा प्रताप के शौर्य का बखान करते हुए विरोधी सेना की पराजित मनोवृत्ति का वर्णन किया है।
व्याख्या
काव्य सौन्दर्य
भाषा खड़ी बोली
शैली प्रबन्ध
छन्द मुक्त
गुण ओज
शब्द शक्ति अभिधा
रस वीर
अलंकार
'मानो उस पर पवि छूट पड़ा' में 'मानो' बोधक शब्द है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
क्षण उछल गया अरि घोड़े पर क्षण भर में गिरते रुण्डों से क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर मस्त गजों के शुण्डों से।बैरी दिल से लड़ते-लड़ते, क्षण खड़ा हो गया घोड़े परघोड़ों से विकल वितुण्डों से, पट नई भूमि नरमुण्डों से
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड के 'पद' शीर्षक से उद्धृत है। यह श्री श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित काव्य 'हल्दीघाटी' से लिया गया है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने महाराणा प्रताप के युद्ध-कौशल एवं वीरता का वर्णन किया है।
व्याख्या
काव्य सौन्दर्य
भाषा खड़ी बोली
रस वीर और बीभत्स
छन्द मुक्त
शैली प्रबन्ध
शब्द-शक्ति अभिधा
अलंकार
गुण ओज 'लड़ते-लड़ते' में एक शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। 'विकल वितुण्डों' में 'व' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
ऐसा रण राणा करता था, पर उसको था सन्तोष नहीं। मैं कर लूँ रक्त स्नान कहाँ क्षण-क्षण आगे बढ़ता था वह, जिस पर तय विजय हमारी है,कहता था लड़ता मान कहाँ,पर कम होता था रोष नहीं।। वह मुगलों का अभिमान कहाँ?
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिन्दी के काव्यखण्ड के 'पद' शीर्षक से उद्धृत है। यह श्री श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित काव्य 'हल्दीघाटी' से लिया गया है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने महाराणा प्रताप के युद्ध-कौशल और देश-प्रेम की भावना को उजागर किया है।
व्याख्या
काव्य सौन्दर्य
भाषा खड़ी बोली
शैली प्रबन्ध
गुण ओज
छन्द मुक्त
रस वीर और रौद्र
शब्द-शक्ति अभिधा
अलंकार
'रण राणा' में 'र' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है। 'क्षण-क्षण' में एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।